नमस्कार मित्रों आज आप सभी के लिए सोमवार व्रत कथा लेकर आए हैं और इसी को सोमवार व्रत की कहानी के नाम से भी जानते हैं मित्रों आप सभी को बता दें इससे पहले हमने आप सभी को सावन सोमवार की व्रत कथा तथा सावन सोमवार का महत्व और सावन सोमवार की पूजा विधि के बारे में आपको बताया है अगर आप सभी ने उस पोस्ट को नहीं पढ़ा तो क्लिक करके आप उसको पढ़ सकते हैं तो चलिए शुरू करते हैं सोमवार की व्रत कथा
सोमवार व्रत कथा || Somvar Vrat Katha || सोमवार व्रत की कहानी || Somvar Vrat Kahani |
सोमवार व्रत कथा ( Somvar Vrat Katha )-
प्राचीन काल की बात है एक गांव में एक साहूकार रहता था साहूकार बहुत धनी था लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इससे हमेशा चिंतित रहता था साहूकार भगवान शिव का सोमवार का व्रत रखता था और भगवान शिव पार्वती की पूजा भी करता था और शाम को शिवलिंग पर दीपक दिखाता था
साहूकार की पूजा को देखकर पार्वती माँ ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु यह साहूकार आपका परम भक्त है प्रति सोमवार को विधि विधान से आप की पूजा करता है मुझे लगता है कि आपको उसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए /
पार्वती जी की बात को सुन कर शिव जी ने कहा ही गौरी यह संसार एक कर्म क्षेत्र है जैसे एक किसान अपने खेत में बीज बोता है तो कुछ वक्त बाद पेड़ मिलता है उसी तरह इस संसार में आदमी जैसा कर्म करता है उसे उसका वैसा ही फल मिलता है
भगवान शिव बोले की इसके कर्मों में संतान सुख नहीं है मां पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान शंकर ने उस साहूकार की मनोकामना को पूर्ण किया और कहा लेकिन इसके भाग्य में संतान योग भी नहीं है लेकिन तुम्हारी आग्रह करने पर मैं इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे देता हूं लेकिन इसे पुत्र होगा वह केवल 12 सालों तक जीवित रहेगा ।
एक रात्रि शिव जी ने साहूकार को सपने में दर्शन दिए और कहा कि उसको जल्द ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी लेकिन उसका केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा ,यह सुनकर प्रसन्न और दुखी भी हुआ /
साहूकार ने इस बात को सुनकर भी पूजा-अर्चना जारी रखी और कुछ दिनों बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हो गई और बालक होने का हर्षोल्लास का माहौल था लेकिन साहूकार खुश नहीं था क्योंकि उसको पता था कि उसके बच्चे का जीवन मात्र 12 वर्ष का है
लेकिन यह बात उसने किसी से नहीं कहीं ,धीरे धीरे अब बालक 11 वर्ष का हुआ तो साहूकार की पत्नी ने कहा कि अब इसका विवाह कर देना चाहिए लेकिन साहूकार ने मना कर दिया और बेटे के मामा को बुलाकर दोनों लोगों को काशी जाकर वहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया
साहूकार ने मामा भांजे से कहा कि वह काशी जाते समय रास्ते में यज्ञ करते हुए भ्रमण करते हुए ही जाए दोनों मामा भांजे ने ऐसा ही किया , काशी जाते वक्त एक रास्ते से मामा भांजे गुजर रहे थे कि उन्होंने देखा एक राजा अपनी पुत्री का विवाह ऐसे राजकुमार से करवा रहा था जो कि काना था यानी उसे एक आंख से दिखता नहीं था
दूल्हे का पिता इस बात से चिंतित था कि अगर दुल्हन पता चल गया दूल्हा काना है तो राजकुमारी विवाह के लिए मना कर देगी इसलिए लड़का के पिता ने साहूकार के पुत्र को देखा तो वह सोचा कि अपने बेटे के स्थान पर इस साहूकार के पुत्र को मैं बैठा कर शादी करा देता हूं फिर बाद में बदल लेंगे यह चीज सोचकर उसने साहूकार के बेटे को इस चीज के लिए राजी कर लिया
इस तरह साहूकार का लड़का दूल्हे के कपड़े पहना और घोड़ी पर चढ़कर सारी रस्म पूरी की। जब फेरों की बारी आई तो दूल्हे के पिता ने साहूकार के पुत्र से अनुरोध किया कि वह यह बात किसी को ना बताएं मामा भी राजी हो गया और विवाह समारोह भी निपट गया शादी संपन्न होने के बाद मामा भांजा काशी के लिए प्रस्थान कर गए।
परंतु साहूकार के पुत्र ने दुल्हन के कपड़ों पर लिख दिया कि तुम्हारी शादी मुझसे हुई है लेकिन जिसके साथ तुम जाओगी वह एक काना आदमी है और मैं काशी में शिक्षा ग्रहण करने जा रहा हूं
जब राजकुमारी ने यह बात पढ़ी तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इंकार कर दिया और अपने पिता से कहा यह मेरा पति नहीं है मेरा पति शिक्षा ग्रहण करने काशी गया है तब तक यह बात फैल गई तो मजबूरी में दूल्हे के पिता को सारी बात बतानी पड़ी तो रानी के पिता ने भी अपनी बेटी को भेजने से इंकार कर दिया
इधर मामा भांजे दोनों काशी पहुंच गए और बालक शिक्षा ग्रहण करने लगा और मामा ने यज्ञ कराना भी शुरू कर दिया धीरे धीरे साहूकार का पुत्र 12 साल का हो गया
एक दिन उसकी तबीयत ठीक नहीं थी वह अंदर सोने गया और उसकी मृत्यु हो गई बाद मे मामा को पता चला बहुत दुखी हुए किन्तु उन्होंने जाकर यज्ञ पूरा कराया और उसके बाद फिर अपने भांजे को देख चीख चीख कर रोने लगे तब माता पार्वती ने किसी की रोने की आवाज सुनी
तो उन्होंने शिव जी से कहा प्रभु कोई मनुष्य रो रहा है चल के दुखों को दूर कर देते हैं पार्वती माँ मामा के पास गए और उन्होंने जब मृत बालक को देखा हैरान हो गई क्योंकि वह भगवान शिव के आशीर्वाद से जन्मा साहूकार का पुत्र है जिसको शिव 12 वर्ष तक जीवन दिया था
पार्वती जी ने मृत बालक को देखा तो उन्हें दया आ गई और उन्होंने शिव जी से कहा प्रभु आप इस बालक को जीवनदान दे दीजिए वरना इसके माता-पिता जीते जी मर जाएंगे माता पार्वती के आग्रह करने पर शिवजी ने उनकी बात मान ली और उसे जीवनदान दे दिया
साहूकार का पुत्र जीवित हो गया मामा भांजे अपने घर की ओर चल दिए रास्ते में साहूकार का पुत्र वहाँ से गुजरा जहां उसका विवाह हुआ था और दुल्हन के पिता ने बालक को पहचान लिया और महल में ले जाकर वापस उन दोनों का विवाह करा कर अपनी पुत्री को साहूकार की बेटी के साथ विदा किया /
जब साहूकार का बालक अपने घर पहुंचा तो उसके माता-पिता निराश बैठे थे वह सोच रहे थे कि उनका बेटा वापस लौटा तो ठीक है नहीं तो वह दोनों अपनी जान दे देगे ।
तभी मामा ने आकर बताया कि उनका पुत्र जीवित है और विवाह करके वापस लौटा है बेटे को जीवित देखा तो खुश हुआ और उसका स्वागत किया और साहूकार खुशी खुशी अपना जीवन बिताने लगा
जैसे भोलेनाथ ने इस परिवार पर कृपा करी वैसे ही प्रभु सब पर अपनी कृपा बनाए रखें
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धन्यवाद राधे राधे